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अग्रि भारत समाचार से अली असगर बोहरा मो.न.8962728652

Acharya Shree was the guardian of true living mercy Yashwant Bhandari the central spokesperson

झाबुआ । अनादिकाल से ही जिन धर्म में गुरू परपंरा को अत्यंत पूजनीय, वंदनीय एवं श्रेष्ठ माना गया है। वर्तमान में भगवान श्री महावीर स्वामीजी के शासनकाल में कई महान आचार्य हुए, जिन्होंने केवल जिन शासन की ही नहीं अपितु संपूर्ण प्राणी जगत के कल्याण के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया। ऐसे ही एक महान आचार्य तीर्थेन्द्र सूरीष्वरजी मसा भी हुए, जो विष्व पूज्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीष्वरजी मसा के प्रथम शिष्य आचार्य धनचन्द सूरीजी मसा के षिष्य थे। बाद आप आचार्य पद से भी विभूषित हुए।

उक्त उद्गार स्थानीय श्री ऋषभदेव बावन जिनालय स्थित पोषध शाला भवन में 24 नवंबर, मंगलवार को प्रातः आचार्य तीर्थेन्द्र सूरीजी के 129वीं जयंती के उपलक्ष में आयोजित गुणानुवाद सभा में पूज्य साध्वी विद्वत गुणा श्रीजी मसा ने व्यक्त किए। आपने आगे बताया कि पूज्य आचार्य श्री धनचन्द सूरीजी मसा के आप परम् प्रिय षिष्य थे एवं आपने त्रि-स्तुतिक संघ की परंपरा को स्थापित करने मंे अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। आप तपस्वी, मनस्वी एवं यषस्वी के साथ अपने षिष्यों तथा अनुयाईयों के प्रति अत्यंत दया और करूणा का भाव रखकर उनके कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहते थे। आप एक परम् साधक एवं महान योगी थे। सभा में तपस्वी साध्वी रष्मि प्रभा श्रीजी मसा भी उपस्थित थी।


मुकुट मणि के समान थे तीर्थेन्द्र सूरीजी

गुणानुवाद सभा में अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री मालवा जैन महासंघ के केंद्रीय प्रवक्ता यषवंत भंडारी ने बताया कि आचार्य तीर्थेन्द्र सूरीजी जिन शासन के आचार्यों में मुकुट मणि के समान थे। आपने झाबुआ, मोदरा (मरूधर) एवं कई अन्य नगरों के राजा एवं ठाकुरों को प्रतिबोधित कर जीव हिंसा बंद करवाई। प्राणी मात्र के प्रति उनमें असीम कारूण्य भाव था। आचार्य श्री कई लब्धियों के धारक थे तथा उनकी शरण मंें जो भी आता, उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होती थी।

श्वेतांबर जैन श्री संघ अध्यक्ष संजय मेहता ने आचार्य श्री के जीवन के बारे मे बताया कि तीर्थेन्द्र सूरीजी का मप्र के सागर नगर के ब्राम्हण समाज के चैबे कुल में जन्म हुआ था तथा बाल्यावस्था में ही आपके माता-पिता का स्वर्गावास हो गया था। आपका पालन-पोषण मामा के घर हुआ। मात्र 8 वर्ष की उम्र में आप जैन यतियों के संपर्क में आए तथा यति दीक्षा आपने स्वीकार की। बाद तात्कालिक त्रि-स्तुतिक संघ के महान आचार्य धनचन्द सूरीजी ने आपके ज्ञान एवं संयम को परखकर जैन भगवती दीक्षा ग्रहण करवाई। संवत 1952 में माउंट आबू तीर्थ मंे आपको आचार्य पद से विभूषित किया गया एवं राजस्थान के प्रसिद्ध तीर्थ बामनवाड़जी में संवत् 1912 में आपका देवलोकगमन हुआ।

झाबुआ में किए 2 चातुर्मास

श्रावक रत्न धर्मचन्द मेहता ने तीर्थेन्द्र सूरीजी को एक महान आचार्य बताते हुए झाबुआ में उनके द्वारा किए गए चमत्कारों का उल्लेख किया। आपने कहा कि आचार्य श्रीजी ने झाबुआ में 2 चातुर्मास किए तथा यहां के तात्कालिक राजा उनके परम् भक्त थे। गुणानुवाद सभा में वरिष्ठ श्रावक तेजप्रकाष कोठारी, अषोक राठौर एवं अषोक कटारिया ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए गुरू के प्रति अपनी समर्पित भावनाओं को प्रकट किया।

माल्यार्पण-दीप प्रज्जवलन कर आरती की

गुणानुवाद सभा से पूर्व 129वीं जयंती के उपलक्ष में स्थानीय गुरू मंदिर में आचार्य तीर्थेन्द्र सूरीजी की तस्वीरा पर जयेष चन्द्रषेखर कांठी परिवार द्वारा पुष्पामाला अर्पित की। दीप प्रज्जवलन का लाभ कुलदीप, अषोक राठौर परिवार ने लिया। तीर्थेन्द्र सूरीजी की आरती जयेष कांठी परिवार ने उतारी। इस अवसर पर श्री संघ के वरिष्ठ सदस्य बाबुलाल कोठारी, जितेन्द्र जैन चैधरी, हस्तीमल संघवी, सुरेन्द्र कांठी, मुकेश रूनवाल, चेतन पालरेचा, रिंकू रूनवाल, धर्मेन्द्र कोठारी आदि के साथ तपस्वी श्राविकाए उपस्थित थी। अंत में आभार सिरोही श्री संघ के अध्यक्ष मनोहर मोदी ने माना।



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