लेखक मुफज्जल हुसैन .....✍️।
इंदौर। महिलाओं से दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न के मामले थम नहीं रहे है । सार्वजनिक स्थलों , कामकाजी जगहों , स्कूल्स कालेज में या फिर रात बेरात सुनसान रास्तों पर नारी सुरक्षित नहीं है । इंदौर और रतलाम के अलग अलग मामलो में नर्सरी की बच्चियों पर हवस के पुजारियों ने कुदृष्टि डाली है जिससे सभ्य समाज कलंकित हुआ है । दिल्ली के निर्भया कांड के बाद पूरे देश में उबाल आया और गुनहगारों के लिए सख्त कानून बनाने और लागू करने की मांग सड़क से संसद और न्यायपालिका तक मुखर हुई ।
कड़े कानून बनने के बाद भी यह सिलसिला थमता नहीं दिखता है तो इसके पीछे समाज शास्त्री जो वजह तलाशते है उन सभी वजहों में यह बात प्रमुखता से आती है कि घर परिवार में दिए जाने वाले संस्कारों में कमी । जिसके चलते पुरुष नारी को सम्मान न देकर उसे एक भोग की वस्तु की नजर से देखते है । समाज के भीतर जब तक नारी को देह से ऊपर उठकर देखने की स्वस्थ दृष्टि विकसित नहीं होगी तब तक कितने भी कड़े कानून लागू कर दिए जाए चीर हरण का सिलसिला थमेगा नहीं । आज के सूचना क्रांति के दौर में और आधुनिकता के नाम पर हद से ज्यादा खुलेपन ने यौन जनित अनेक कुंठाओं को भी जन्म दिया है जिसकी परिणिती महिलाओं के दैहिक शोषण के रूप में सामने आती है ।
उठाईगीरे और अपराध में संलिप्त परिवारों के मर्द तो अन्य औरतों को बहन बेटी या माँ के रूप में देख ही नहीं पाते किंतु सभ्य कहे जाने वाले समाज में भी अक्सर मर्द मौका मिलने पर औरत के प्रति नजरिया दूषित करने में देर नहीं करते है ।कड़े कानूनों को बना देने से या लागू कर देने से काम नहीं बननें वाला है बल्कि महिलाओं के प्रति सच्चे आदर भाव को विकसित करने की आवश्यकता है तभी स्वस्थ समाज का निर्माण होगा जहां नारी सम्मानजनक स्थिति में सांस ले सकेगी ।
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