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Agri Bharat Samachar -  Indore, Jhabua and MP Hindi News

अग्री भारत समाचार से ब्यूरो चीफ मु. शफकत दाऊदी के साथ स्वतंत्र लेखक अनिल तंवर ।

अलीराजपुर । यूँ तो आदिवासी बहुल आलीराजपुर जिले में विकास के बड़े बड़े दावे किए जाते हैं किन्तु आज भी अनेक गाँव मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. ऐसे गाँवों में क्या परेशानी है , किन प्राथमिक सुविधाओं की दरकार है यह तब तक नहीं पता लगता जब तक कोई बड़ा अधिकारी यथा कलेक्टर या एस डी एम खुद वहाँ ना जाए . इस तरह के गाँवों में दौरा करने की जहमत कोई सक्षम अधिकारी नहीं उठाता है क्योंकि वहाँ जाना यानी अपना वाहन छोड़कर उबड़ खाबड़ पगडंडी से बहुत लंबा सफ़र पैदल चलना होता है। यह सुविधा भोगी अधिकारियों को कभी रास नहीं आया। कभी कभी कुछ बिरले अधिकारी ही कुछ जानने करने के जज्बे के खातिर यहाँ आकर स्थानीय आदिवासियों के हाल – चाल , तकलीफें जानते और निराकरण करते है. ऐसा ही अभियान यहाँ के कलेक्टर ने प्रारम्भ किया। 

अभी हाल ही में पदस्थ आलीराजपुर कलेक्टर डॉक्टर अभय अरविंद बेडेकर ने यह  मुहीम प्रारम्भ की है कि उन दुर्गम गांवों का दौरा किया जाए जहां जाना दुश्वार है और आज तक कोई सक्षम अधिकारी नहीं गया हो. इसी कड़ी में उन्होंने  आलीराजपुर की तहसील जोबट मुख्यालय से 28 किमी दूर ग्राम बहेडिया जो ना सिर्फ़ ज़िले की बॉर्डर का गाँव है उसके बाद धार शुरू हो जाता है। बल्कि अत्यंत पिछड़ा और उपेक्षित गाँव है, का दौरा किया । कलेक्टर बताते है कि  इस गाँव  की विडम्बना होकर यह  इतना उपेक्षित है कि  आलीराजपुर के ज़िला बनने के 15 वर्षों के बाद भी सरकार का कोई नुमाइंदा , कोई अफ़सर , कलेक्टर तो दूर की बात है पर एसडीएम व तहसीलदार भी आज तक उस गाँव में नहीं गए । वह कहते है कि जब मैंने उस गाँव में जाकर ग्राम पंचायत के सरपंच पति करन सिंह बामनिया से पूछा कि इस गाँव में कोई सरकारी अफ़सर या कलेक्टर कभी आए ?

तो उसने कहा कि नहीं उसे इतना याद था कि  एक कलेक्टर साहब थापली गाँव (05 किमी दूर) तक आए थे पर बहेडिया में नहीं आये। उसने ये भी बताया कि साहब नया ज़िला बनने से  पहले ज़िला झाबुआ था । भी आजतक कोई अफ़सर या कलेक्टर इस गाँव में नहीं आया । गाँव वालों के लिये कलेक्टर या छोटे कलेक्टर (एसडीएम) को प्रत्यक्ष देखना भी एक अलग अनुभव रहा । कलेक्टर ने अपना अनुभव बताया कि यह गाँव आलीराजपुर मुख्यालय से लगभग 63 किमी दूर है . वहाँ जाना इतना दुरूह कि पहले दो बार गाड़ियाँ बदलीं और आख़िरी 500 मीटर की दूरी  तो पैदल तय करने पड़ी . गाँव तक पहुँचने के लिए मात्र एक पगडंडी है जिसपर  होकर सिर्फ़ मोटर-साइकल जा सकती है। कलेक्टर आगे बताते है कि - मेरा भी इतने पिछड़े और पूरे आदिवासी गाँव में पहली बार जाना हुआ , परंतु आश्चर्य हुआ कि गाँव के भिलाला फलिया के लगभग 35-40 लोग वहाँ मेरा इंतज़ार कर रहे थे, यह भी  सिर्फ़ कलेक्टर को देखने के लिये जो उनके लिए आश्चर्य जनक अनुभव रहा । गाँव के लोगों से चर्चा करने पर ज्ञात हुआ कि गाँव के कुछ लोगों के पास  आधार कार्ड नहीं है , कुछ के पास  राशन कार्ड नहीं है अर्थात  उन्हें अनाज भी  नहीं मिल रहा है . बावजूद इसके  उन्होंने इसका दोष प्रशासन को नहीं दिया।



गांववासियों ने कलेक्टर को बताया कि उनके नाम पात्रता पर्ची में जोड़े जाए ताकि उन्हें नियमित राशन मिल सके. राशन की दूकान भी यहाँ से 5 कि.मी. दूर रंजीतगढ़ में है इसलिये राशन की दुकान से हर हफ़्ते दो दिन राशन इस फलिया में लाकर वितरण किया जाए  ताकि उन्हें राशन उठाकर 05 किमी पैदल नहीं चलना पड़े । गाँव में पानी की समस्या भी है क्यूँकि ट्यूबवेल का जल स्तर बहुत नीचे चला गया है जिस कारण ग्रामीण जन पीने के पानी को लेकर भी परेशान हैं. परंतु उसमें भी शासन प्रशासन से सामान्य  माँग ही है कि,  ”साहब पानी की व्यवस्था देख लीजिए” । जब कलेक्टर ने गांववासियों से पूछा कि -- क्या इस गाँव में कुछ पढ़े-लिखे लोग हैं? तो पुरुष वर्ग में सबसे ज़्यादा पढ़ा लिखा व्यक्ति आठवीं फेल निकला . पर एक बहू (जिसे आदिवासी बोली में लाड़ी कहते है) कुँवर बाई मिली जो दसवीं पास थी . जो पास के गाँव से यहाँ शादी के बाद आयी है . उसने बहुत डरते और शरमाते हुए  बताया कि, वह   दसवीं पास है . तब सरपंच पति ने बोला कि, ”सर इस लाड़ी को मिनी आंगनवाड़ी में कार्यकर्ता बना दो ” मतलब इस फ़लिया में मिनी आँगन वाडी खुलवा दो . जब कुँवर बाई से पूछा कि -- क्या तुम काम करना चाहती हो?,  तो उसने कहा कि हाँ . यदि अवसर मिलेगा तो काम करूँगी ।

यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि आलीराजपुर का लिंग-अनुपात भी (1009/1000) बहुत अच्छा है और साक्षरता दर 37.22% (जनगणना 2011) कम होने के बाद भी बिगड़ा नहीं है . इसका मुख्य कारण आदिवासी समाज में स्त्री का सम्मान होना है . पढ़ाई लिखाई से इसका सीधा सम्बंध भले ही  नहीं हो किन्तु अगर कहीं भी पढ़ाई लिखाई से सम्बंध है भी , तो वो विपरीत ही है जो स्त्रियों के लिये ही हानिकारक सिद्ध हुआ है . शायद ज़्यादा पढ़े लिखे समाजों में लिंग-अनुपात ख़राब हो जाता है.वर्तमान समय में जिले के  आदिवासी समाज के अनेक व्यक्ति आई ए एस होकर कमिश्नर, कलेक्टर या समकक्ष पद , डिप्टी कलेक्टर, एस डी एम जैसे महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थ है जिनसे प्रेरणा प्राप्त कर इसी समुदाय के अनेक  युवक – युवतियाँ भी  उच्च शिक्षित होकर समाज का नाम रोशन कर रहे है. नई पीढ़ी शत प्रतिशत साक्षर होने की दिशा में अग्रसर है। कलेक्टर ने आगे बताया कि  जब वह वहीं संचालित प्राथमिक शाला में गए  तो वहाँ 18-20 बच्चे पढ़ते हुए मिले . उत्सुकता वश उन्होंने उनसे गिनती सुनाने को कहा तो ना सिर्फ़ गिनती बल्कि बच्चों ने 10 तक के पहाड़े भी सुना दिए . जिस आदिवासी फलिया का सबसे पढा लिखा व्यक्ति आँठवी फेल हो वहाँ शिक्षा की ये प्रगति बहुत सुखदायी लगी .उन बच्चों को देखकर कलेक्टर, डॉक्टर अभय अरविंद बेडेकर आलीराजपुर और मध्यप्रदेश के उज्ज्वल भविष्य के प्रति आश्वस्त हुए । शिक्षक महोदय नियमित आते हैं और मन लगाकर पढ़ाते भी  हैं . उन्होंने  सभी बच्चों को बिस्किट देकर उन्हें  शुभकामनाएँ भी  दी । कलेक्टर का कहना है कि वे हमारे सभी आदिवासी भाई बहनों  को शासन की सभी योजनाओं का लाभ दिला कर रहेंगे क्योंकि समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति का जब उद्धार होगा तभी तो वास्तविक अंत्योदय होगा . यही  हमारा ध्येय, कर्तव्य और संकल्प भी है।

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