अग्रि भारत समाचार से नरेंद्र तिवारी 'एडवोकेट'
भोपाल । देश इन दिनों कोरोना महामारी के दूसरे बेहद कठिन दौर से गुजर रहा है। यह दौर संयम से महामारी का मुकाबला करने का है। एक कमजोर कदम बड़े वर्ग को कोरोना संक्रमण की चपेट में पहुंचा सकता है। संयम एक तरफा नहीं चौतरफा होना चाहिए। देश का बड़ा नागरिक समाज मुसीबतों को सहते हुए भी इस संयमो का पालन करता दिखाई दे रहा है। किन्तु इस संयम को देश के कुछ लोगो का असंयम दांव पर लगाता दिख रहा है। सबसे ज्यादा असंयमित आचरण का परिचय पांच राज्यो में जारी चुनाव प्रचार में देखने को मिला जहां नेताओ की बड़ी-बड़ी आमसभाएँ ओर रोड़-शो हो रहें है ओर सोशल डिस्टेंसिंग की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रहीं है। इस समय देश मे एक चुटकुला काफी प्रचलित है की 'कोरोना को चुनाव से डर लगता है' वह उन राज्यों में नहीं जाता जहां चुनाव चल रहे है। कहने का मतलब बिल्कुल साफ है की कोरोना महामारी के दौरान राजनैतिक दलों ने चुनाव प्रचार में भीड़ भरे आयोजनों से गुरेज करना चाहिए था। इन आयोजनों में तकनीकी माध्यम का प्रयोग करना चाहिए था। क्या वर्तमान समय मे तकनीकी माध्यमों से मतदाताओं तक संदेश नही पहुचाया जा सकता है ? किन्तु आश्चर्य भारत के किसी भी राजनैतिक दल ने यह नेक कार्य नही किया। इन दलों के बड़े नेताओ को जिन्हें देश की जनता अपना पथ-प्रदर्शक मानती है वें भी कोरोना के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंतित दिखाई नहीं दिए। चुनावी राज्यों में हुए और चल रहें भीड़भरे आयोजन तो कुछ यूँ ही बयाँ कर रहे है।
मतलब साफ नजर आ रहा है कि कोरोना महामारी के दौरान देश के किसी भी राजनैतिक दल ने गाइडलाइन का पालन करने की जहमत नहीं उठाई ताकि देश की जनता को इस कठिन दौर में संदेश दिया जा सके कि सत्ता नहीं हमारे लिए देशवासियों का स्वास्थ्य सर्वोपरि है।
नेताओं के असंयमित आचरण का हवाला दिल्ली में जारी किसान आंदोलन में भी खूब सुनाई दिया।अब यह हवाला महाराष्ट्र में जहां कोरोना की महामारी सबसे विकराल रूप में दिखाई दे रही है,नांदेड़ में होला मोहल्ला के दौरान ओर फिर सतारा के बावधान गांव में रंगपंचमी के समय निकलने वाले एक परम्परागत जुलूस के दौरान भी सुनने को मिला है।
यह सच है कि देश के धार्मिक और सामाजिक संगठनों की भूमिका सदैव देशहित में रहीं है। हमेशा इन संगठनों द्वारा राष्ट्रीयता एवं देशप्रेम का संदेश देश की जनता को दिया है।कोरोना के प्रथम दौर में भंडारों, लंगरों ने करोड़ों लोगों को भोजन दिया यह क्रम अब भी जारी है। संकटकाल मे यह प्रक्रिया ओर भी तेज हो जाती है। समाज इन सकारात्मक संदेशों से ऊर्जा ग्रहण करता है। कोरोना गाइड लाइन के मध्यनजर हमारी सामाजिक एवं धार्मिक परम्पराओ के औपचारिक निर्वहन की आवश्यकता है। इन परम्पराओं को सामान्य अवस्थाओं में हमने बड़े रूप में भी मनाया एवं सामूहिक आनन्द भी लिया है। देश का संविधान नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता के अन्तर्गत धर्म को अबाध रूप से मानने,आचरण और प्रचार की स्वतंत्रता भी देता है। देश के नागरिक आजादी के बाद से संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतन्त्रताओं के तहत अपने उत्सव पर्व ओर परम्पराओं का आयोजन करते आ रहें है,किंतु कठिन समय मे जब परम्पराओं को औपचारिक करने की आवश्यकता पड़ी तो पुलिसकर्मियों पर तलवार चलने लगी, प्रशासन के द्वारा अनुमति नहीं मिलने पर भी हजारो लोग एकत्रित होकर सतारा में जुलूस का आयोजन करने लगे। यह जानते हुए भी की देश का महाराष्ट्र राज्य कोरोना संक्रमण से सबसे अधिक पीड़ित है। नांदेड़ ओर सतारा की घटनाएं हमारे सामाजिक संगठनों द्वारा दिये गए नकारात्मक संदेशों का उदाहरण है जो हमे सोचने पर मजबूर करता है। दोनो ही घटनाओं में पुलिस ने पूर्व में हीं आयोजकों से बैठक कर औपचारिक आयोजन करने की सलाह दी थी। किसी भी बड़े आयोजन की अनुमति नहीं दी गयी थी।
देश के राजनैतिक,धार्मिक और सामाजिक संगठनों को अपने कार्यो,निर्णयों से देश की जनता को सकारात्मक संदेश देना चाहिए। यह संदेश हरिद्वार कुम्भ मेले से निकलकर भी आना चाहिए कुम्भ के विशाल मेले में भीड़ का सैलाब उमड़ता है। इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर पाना बेहद होगा। वैसे सरकार ने टिका प्रमाण-पत्र मेले में शामिल होने के लिए आवश्यक कर दिया है किन्तु ओर भी कठोर उपायों की आवश्यकता है। कोरोना प्रभावित राज्यो की जारी सूची अनुसार महाराष्ट्र तो अव्वल चल ही रहा है। चुनावी राज्य पश्चिम बंगाल इस सूची में 8 स्थान पर है, असम 17वें, पंडुचेरी 24 ओर कुम्भ मेला राज्य उत्तराखंड 21वें स्थान पर है। मास्क पहनना ओर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना कोरोना रोकथाम के आवश्यक उपाय है। सोशल डिस्टेंसिंग की खिलाफत हमे महामारी के अधिक निकट खड़ी कर देगी इस गम्भीरता को समझने की आवश्यकता है।
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