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अग्रि भारत समाचार से तहसील संवाददाता शब्बीर के• मर्चेंट की रिपोर्ट

The festival of Shitala Mata, the goddess who ended infectious diseases was celebrated with great pomp, worshiping the mother while following social distancing.

नानपुर । होली के बाद सातवें दिन देवी शीतला माता की पूजा की परंपरा है। इन्हें शीतला सप्तमी कहा जाता है। चैत्र मास के कृष्णपक्ष की सप्तमी को शीतला माता की पूजा की जाती है। यही कारण है कि इसे शीतला सप्तमी कहा जाता है। माता शीतला अत्यंत रूपवती शांत स्वभाव की हैं। इनके एक हाथ में झाडू है और ये गर्दभ यानि गधे की सवारी करती हैं। कुछ जगहों पर चैत्र मास के कृष्णपक्ष की सप्तमी को इनकी पूजा की जाती है। इस बार शीतला माता का पर्व धूम धम से मनाया गया। 


  ज्योतिषाचार्य, भागवत कथा के प्रखर वक्ता पंडित कमलेश नागर ने बताया कि शीतला सप्तमी पर व्रत रखकर माता शीतला की पूजा की जाती है। सूर्योदय व्यापिनी तिथि पर यह व्रत किया जाता है जोकि इस बार 4 अप्रैल को पड़ेगा। खास बात यह है कि शीतला माता में शीतल अर्थात ठंडा भोजन किया जाता है। केवल यही ऐसा अकेला व्रत है जिसमें न केवल खुद ठंडा भोजन किया जाता है बल्कि माता को भी यही भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।

शीतला सप्तमी की पूजा के लिए एक दिन पूर्व ही भोजन बना लेने की परंपरा है। इसलिए इस व्रत को बसौड़ा भी कहा जाता है। बासा भोजन करने के लाभ भी बताए गए हैं। इस संबंध में स्कंद पुराण में कहा गया है कि मां शीतला की पूजा से संक्रामक बीमारियां समाप्त हो जाती हैं। माना जाता है कि शीतला सप्तमी पर व्रत रखकर माता शीतला की पूजा करने से चेचक सहित संक्रामक बीमारियां नहीं होती हैं साथ ही पंडित नागर ने कहा कि सभी सभी श्रद्धालु कोविड 19 को देखते हुए शासन प्रशासन की गाइड लाइन का पालन करे और मास्क पहनकर व दो गज की दूरी बनाकर दर्शन लाभ करे जय माता दी। शीतला माता समिति के प्रमुख श्री मनोहरलाल वाणी ने कहा कि समिति ने निर्णय लिया कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए सभी भक्तों को दर्शन के समय प्रशासन के नियम का पालन करते हुए सोशल डिस्टेंसिंग मे पूजा करवाई गई।



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