अग्रि भारत समाचार से पारस सोलंकी की रिपोर्ट
अवल्दामान । ग्रामीण क्षेत्र मैं इन दिनों गरीब परिवारों ने महंगाई के कारण गैस के चूल्हे के स्थान पर लकड़ी और कोयले का चूल्हा जलाना शुरू कर दिया है। आदिवासी बहुल जिलों ग्रामीण क्षेत्रों में कई परिवार ऐल्हे पर से हैं, जो फिर से चूले पर लोट आए हैं। एक माह में रसोई गैस सिलेंडर के दाम चौथी बार बढ़े हैं। ऐसे में मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों ग्रामीण क्षेत्रों में कई परिवार ऐसे हैं, जो फिर से चूल्हे पर लौट आए हैं। आदिवासी बहुल की पत्नी फिर से चूल्हा जलाने को मजबूर हो गए हैं. उज्जवला में मिले चूल्हे और गैस सिलेंडर को हफ्ते दस दिन में साफ कर लेते हैं. वे मजदूरी करते हैं। उपभोक्ता कह रहे हैं कि पहले आदत डाल दि और अब गैस मंहगी कर दी. लकड़ी जुटाना मुश्किल हो रहा है। गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमतों से ग्राहक परेशान उज्ज्वला योजना के कई लाभार्थियों ने नहीं भरवाया सिलेंडर लकड़ी और कोयले का चूल्हा जलाना किया शुरू।
महिलाओं को चूल्हे के धुएं से निजात दिलाने के लिए उज्ज्वला योजना की शुरुआत की गई. लेकिन गैस सिलेंडर के बढ़ते दामों ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. गरीब परिवारों को मुफ्त सिलेंडर तो दे दिए गए, लेकिन गैस के दाम बढ़ने से लाभार्थी इन्हें रीफिल नहीं करा पा रहे हैं. 10 महीने में 250 रुपये से ज्यादा और 44 दिन में 125 रुपये के करीब गैस सिलेंडर के दाम में इजाफा हो चुका है. सब्सिडी भी बंद होने से मध्य प्रदेश में उज्ज्वला योजना के 30 से 35 फीसदी लाभार्थियों ने फिर सिलेंडर नही भरवाया.। उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त घरेलू गैस के कनेक्शन बांटे गए. कोरोना काल में तीन सिलेंडरों की मुफ्त रीफिलिंग की गई. लेकिन अप्रैल में गैस सब्सिडी बंद होने और दिसंबर के बाद कीमतों में अचानक लगी आग ने गरीब परिवारों की महिलाओं के लिए दो वक्त की रोटी बनाना मुश्किल कर दिया। आदिवासी बहुल ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई के चलते बड़ी तादाद में उपभोक्ता सिलेंडर नहीं भरवा पा रहे हैं. महंगाई और रसोई गैस की बढ़ती कीमतों ने सरकार की धुआं मुक्त भारत की योजना को भी पलीता लगा दिया है. काफी परिवारों ने महंगाई के कारण गैस के चूल्हे के स्थान पर लकड़ी और कोयले का चूल्हा जलाना शुरू कर दिया है. उपभोक्ता कह रहे हैं कि पहले आदत डाल दि और अब गैस मंहगी कर दी. लकड़ी जुटाना मुश्किल हो रहा है.। तेल कंपनियों के आंकडों पर नजर डाले तो सिर्फ 80 से 85 फीसदी ही उज्जवला योजना के उपभोक्ता रेगुलर सिलेंडर भरवा रहे हैं. यानि की 63.64 लाख में से 21 लाख 60 हजार उपभोक्ता ही रेगुलर रीफिलिंग करवा रहे हैं. दिसंबर से सिलेंडर के दाम 700 रुपये तक पहुंच गए और पिछले 9 महीने से सब्सिडी भी बंद है. ऐसे में इसका सीधा असर उज्ज्वला योजना के कनेक्शन पर दिख रहा है. पिछले साल अप्रैल महीने में सिलेंडर का बेस प्राइस 520 रुपये रखा गया था. इसे मौजूदा घरेलू सिलेंडर के दाम से घटाया जाए तो करीब 303 रुपये की सब्सिडी आम आदमी को मिलनी चाहिए. ऐसे में सिलेंडर 823 रुपये की बजाय 520 रुपये का ही पड़ता.केंद्र सरकार ने कोरोना काल में उज्ज्वला गैस का उपयोग करने वाले कमजोर परिवारों को मुफ्त में सिलेंडर रीफिलिंग का लाभ दिया था. यह लाभ सरकार ने अप्रैल से जून के बीच तीन सिलेंडरों का रुपया उपभोक्ताओं के खातों में डालकर दिया था. मुफ्त लाभ के सिलेंडर की गैस खत्म होने और दाम बढऩे से उज्ज्वला गैस के सिलेंडरों की रीफिलिंग से उपभोक्ताओं ने मुंह मोड़ लिया है. इससे रीफिलिंग के आंकड़ों में गिरावट आ गई है.केवल उज्ज्वला ही नहीं, गैस एजेंसियों का दावा है कि आम उपभोक्ताओं के भी सिलेंडर लेने की संख्या में कमी आई है. मगर सबसे बड़ी चिंता ग्रामीण इलाकों और गरीब तबके के फिर से वापस चूल्हे की तरफ लौटने को मजबूर कर दिया है।
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