अग्रि भारत समाचार से नरेंद्र तिवारी 'एडवोकेट'
भोपाल । होली नाम सुनकर ही मन प्रफुल्लित जाता है,उल्लास से भर जाता है,आनंदविभोर हो जाता है। अपने बचपन की स्मृतियों में खोते हुए होली की कल्पना करता हूँ तो पाता हूँ की होली का दिन जब गली मोहल्ले के सब बच्चे रंगों की बाल्टी से अपनी पिचकारी भरते ओर सड़क से गुजर रहे हर व्यक्ति पर रंगों की फुहार छोड़ देतेथै, यह जानते हुए की वह व्यक्ति कौन है किस जाति धर्म सम्प्रदाय का है। होली के दिन भेद खत्म हो जाते थै। यह पर्व समानता के भाव प्रकट करता है। छोटे बड़े अमीर-गरीब और जाति के भेद को मिटाने वाला कोई पर्व है तो वह होली ही है। असल मे होली समानता का भाव पैदा करती है। सब एकाकार हो जाते है। होली में भेद नही है। यह निर्भेद है, मॉनव-मॉनव एक समान का सार्वजनिक उदघोष सृष्टि के किसी पर्व में सम्मिलित है तो वह होली में है। प्रकृति भी इस दौरान मादकता से भर जाती है। पलास में फूल खिलते है। गांवों में इन फूलों से निर्मित रंगों से होली खेली जाती है। होली प्रसिद्ध भारतीय पर्व है। यह सदियों से देश मे मनाया जा रहा है। इसकी कहानी होली के जलने से शुरू होती है। होलिका दहन भी दरअसल बुराइयों का दहन है। जब ईश्वर के भक्त प्रहलाद को उसके नास्तिक पिता तरह-तरह के जतन कर खत्म करना चाहते है इस कढ़ी में वह अपनी बहन होलिका जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त है। जिसकी सहायता से भक्त प्रहलाद को खत्म करने का प्रयास किया जाता है। भक्त भगवान के प्रताप से बच जाता है और होलिका जलकर नष्ट हो जाती है। पर्व का यह भी संदेश है कि अच्छाइयों को बुराइयां कभी मिटा नहीं सकती। होली दहन के बात धुलेंडी का पर्व आता है,इस दिन रंगों से होली खेली जाती है। असल मे होली का यह पर्व रंगों से भरा हुआ है। होली के यह उल्लासित रंग, मस्ती के रंग है। फ़िल्म शोले में एक गाना है "होली के दिन दिल खिल जाते है,रंगों में रंग मिल जाते है,गीले शिकवे भूलकर दोस्तो दुश्मन भी गले मिल जाते है। इस गीत में होली के दिन दिल खिलने का मतलब मनुष्यो में व्याप्त प्रसन्नता ओर उल्लास से है। रंग लगाते ही बरसो की कटुता भी दोस्ती में बदल जाती है। होली पर गीतों कविताओं से साहित्य भरा पड़ा है। सदियों से होली के रंग भारत मे उड़ते रहे है। हरिवंश राय बच्चन ने लिखा 'आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो, होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो।' इन पंक्तियों में होली के दिन मिलने वाली खुली छूट जिसमे अपरिचित को भी रंग लगाने की आजादी होती है। रंग लगाकर अपरिचित को भी परिचित बनाया जा सकता है। इसी कविता में आगे की पंक्ति है 'जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो, होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो।' जो अपना रूठा है,नाराज है उसे मनाने का होली से बेहतर दिन कोई नही है। उस रूठे हुए को भी रंग लगाकर बाहों में भरकर फिर से प्रेम के पग बढ़ाए जा सकते है। जब मनुष्यो के मध्य जाति,धर्म,भाषा, सम्प्रदाय ,अमीरी-गरीबी,काले-गोरे के अनेकों भेद व्याप्त हो तब होली की प्रासंगिकता ओर बढ़ जाती है। प्रकृति के यह रंग मनुष्यो के व्याप्त मतभेदों को दूर कर सकते है । रंग सबके है वह भेद नही करते जिसके गालों पर लगते है उसे ही रंगीन कर देते है। होली का यह पर्व सामाजिक समानता का उदघोष करता प्रकट होता है। दरअसल यह भेद मनुष्यो द्वारा निर्मित है। प्रकृति कभी भेद नहीं करती हवा,पानी,सूरज की रोशनी, सबको समान रूप से मिलती है। पेड़ पौधे मिट्टी कहा भेद करते है।
होली उत्सव के संदर्भ में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है कि सहस्र मधु मादक स्पर्शी से आलिंगित कर रही सूरज की इन रश्मियों ने फागुन के इस बसंत प्रात: को सुगंधित स्वर्ण में आह्लादित कर दिया है। यह देश हंसते-हंसाते व मुस्कुराते चेहरों का देश है। जिंदगी जब सारी खुशियों को स्वयं में समेटकर प्रस्तुति का बहाना मांगती है तब प्रकृति मनुष्य को होली जैसा त्योहार देती है।
टैगोर के शब्दों के अनुरूप इस बार होली महज भारत मे भी ही नही सम्पूर्ण विश्व मे व्याप्त भेदो को समाप्त कर सकेगी मनुष्यो के मध्य उमंग प्रेम और उल्लास का वातावरण निर्मीत कर सकेगी। इस बार होली के दहन में बुराइयों को दहन करें अच्छाइयों के रंगों को लगाकर समाजिक बुराइयों को खत्म करने का भी प्रण लें।
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