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अग्रि भारत समाचार से कादर शेख की रिपोर्ट

निमित्त और उपादान की सही समझ ही जीवन में समाधि लाती है - गिरिशमुनिजी

थांदला । जिनशासन गौरव आचार्य भगवंत उमेशमुनिजी "अणु" के प्रथम शिष्य धर्मदासगण प्रवर्तक आगम विशारद पुज्य श्रीजिनेंद्रमुनिजी आदि ठाणा 4 एवं पुज्या श्रीनिखिलशीलाजी म.सा. आदि ठाणा 4 का ऐतिहासिक चातुर्मास थांदला नगर में चल रहा है। पुज्यवर के सानिध्य में ज्ञान दर्शन चारित्र तप की आराधना अव्याबाध रूप से निरंतर जारी है। रविवारीय युवाओं की विशेष क्लास में पुज्य श्री गिरीशमुनिजी ने युवाओं को प्रेरणा देते हुए कहा कि जीवन में समस्या बहुत है लेकिन उचित समाधान दिखाई नही देते जिससे हमारें जीवन मे असमाधि आ जाती है। जैन धर्म में इस तनाव को कम करने का सुंदर समाधान मौजूद है।

उन्होंने कहा कि कोई भी काम अकारण नही होते उसके पीछे कोई न कोई कारण होता ही है लेकिन हम अनेक अवसर पर इसे चमत्कार भी मान लेते है। पूज्य श्री ने जैन आगम का आलम्बन लेते हुए कहा कि काल, स्वभाव, नियति(भाग्य), कर्म और पुरुषार्थ के साथ निमित्त और उपादान रूप दो कारण से हर कार्य सिद्धि होते है। निमित्त अर्थात कार्य के होने में सहायक पदार्थ व्यक्ति आदि जो स्वतः कार्य की पूर्णता पर पृथक हो जाते है वही उपादान अर्थात कार्य मे सहायक पदार्थ व्यक्ति आदि जो कार्य पूर्णता पर कार्य रूप में ही परिणित हो जाते है। 

उन्होंने उदाहरण से इसे स्पष्ट करते हुए कहा जैसे कुम्हार द्वारा मिट्टी का कलश बनाया जाता है जिसमें उपयोग में आने वाली सामग्री में चाक, रस्सी आदि तो निमित्त मात्र है लेकिन मिट्टी उपादान है वही अग्नि, पानी के जो अंश कलश रुप में परिणित हुए वे उपादान है बाकी निमित्त रूप है। उन्होंने व्यवहारिक जीवन में जागृत रहते हुए श्वान और सिंह में जिस तरह श्वान हमेशा निमित्त पर प्रहार करता है जबकि सिंह हमेशा उपादान पर दृष्टि रखता है वैसे ही हमें भी निमित्त को उपकार रूप मानते हुए उपादान पर ध्यान देने की प्रेरणा दी। 

जब व्यक्ति मच्छर के काटने पर हमें उसके काटने का अनुभव हुआ डेंगू मलेरिया आदि हुए यह सब भी उपादान रूप हमारें अशाता वेदनीय कर्मोदय के कारण हुआ जबकि मच्छर तो निमित्त बना तब हम कषाय प्रवृत्ति से भी बचेंगे जो जीवन में समाधि को लाएगी। 

उन्होंने चित्त की प्रसन्नता को समाधि से जोड़ते हुए कहा कि जैसे गर्मी में हीटर से ज्यादा गर्मी होती है वैसे ही सर्दी में कोई ऐसी का प्रयोग नही करता वैसे ही जब हम तन को स्वस्थ्य रखने के लिए नाना प्रकार के उपाय करते है वैसे ही चित्त की प्रसन्नता व जीवन में समाधि लाने के लिए विशेष श्रम करना आवश्यक है।

इसके लिए सीधा उपाय है हमारें सिद्ध कार्य के सहायक निमित्त के प्रति हमें धन्यवाद देना व विपरीत स्थितियों में उपादान को प्रधानता देने से हम समाधि को प्राप्त होते है। अंत में उन्होंने कहा कि जब गुरु सबके सामने हित शिक्षा देते है तो वह हमें बुरी लगती है जबकि वह तो निमित्त रूप अनमोल हीरें के समान समझना चाहिए वही कोई विशेष कार्य अथवा उपलब्धि पर हम फूल जाते है जबकि वहाँ उपादान को महत्व देना चाहिए। 

जिस प्रकार गुब्बारें में हवा भर दी जाए तो वह उछलने लगता है लेकिन एक आलपिन उसका उछलना खत्म कर देती है वैसे ही अहंकार से भरें इंसान की स्थिति भी किसी गुब्बारें से कम नही है इसलिए उसे हमेशा निमित्त व उपादान को पहचानते हुए जागृत रहना चाहिए व अशुभ प्रवृत्तियों से बचते हुए शुभ प्रवृत्ति करना चाहिए जो किसी भी स्थान पर की जा सकती है।


दया करके दिया छहकाय जीवों को अभय दान

भव्य घोड़ावत, युग जैन, नव्या शाहजी, श्रेयल कांकरिया, अदिति कांकरिया, भवी चौरड़िया, तनीषा कांकरिया, माही श्रीश्रीमाल, दिविशा चोपड़ा, अंजली शाहजी, नैंसी शाहजी, जिनाज्ञा छाजेड़, निहाली चोपड़ा, भव्या चोपड़ा आदि ने पूरे दिन की जीव दया करके छहकाय जीवों को अभयदान दिया। 


इंदौर श्रीसंघ ने की चातुर्मास विनंती - थांदला श्रीसंघ ने किया आतिथ्य सत्कार

कोरोना के प्रभाव कम होने के साथ ही गुरुभगवन्त के दर्शनार्थ के लिए इंदौर से गुरुभक्त श्रीसंघ के रूप में गुरु चरणों मे उपस्थित हुआ जहाँ कनकमल बाठिया एवं प्रकाशचन्द्र चौरड़िया ने संघ कि ओर से आगामी 2021 का वर्षावास इंदौर शहर में करने की विनंती की, पेटलावद की नन्ही सिद्धि जैन न स्तवन प्रस्तुत किया। वही रतलाम, लिमड़ी, पेटलावद, करवड़, जामली, मेघनगर, झाबुआ आदि स्थानों से गुरु दर्शन को पधारें गुरु भक्तों के आतिथ्य सत्कार का लाभ थांदला श्रीसंघ ने किया जहाँ श्रीललित जैन नवयुवक मंडल के सदस्यों ने आतिथ्य सेवा की। धर्मसभा का संचालन श्रीसंघ अध्यक्ष जितेन्द्र घोड़ावत ने किया उक्त जानकारी संघ प्रवक्ता पवन नाहर ने दी।

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