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अग्रि भारत समाचार से कादर शेख की रिपोर्ट✍️

thandla Jain

गाँधीजी के सत्य अन्वेषक के लघुता वाली बात से प्रेरित होकर "अणु" उपनाम रखा था आचार्यश्री ने ...... गिरीश मुनि।


थांदला । रवीवार को जैन धर्म दिवाकर धर्मदास गण प्रमुख प्रवर्तक श्री जिनेंद्र मुनिजी म. सा. एवं पूज्य श्री गिरिशमुनिजी म. सा. ने युवाओ के लिये विशेष क्लास लगाई जिसमें इंटीरियर डिजाइनिंग ऑफ़ लाइफ अर्थात भीतर आत्मा का कैसे सँवारा जाए इस पर विस्तृत चिंतन प्रस्तुत किया गया।

15  से 40 वर्ष किशोर युवाओं के लगभग 90 बच्चों को सम्बोधित करते हुए पूज्य श्रीगिरीशमुनिजी ने कहा कि वर्तमान समय में घड़ी सबके पास है परंतु समय नही है। पहले जब घर से निकलते थे तो माता-पिता बड़ो के चरण छू कर निकलते थे पर आज मोबाइल की बैटरी फूल करके निकलते है यही फर्क आज के समय में महत्वपूर्ण है।

संस्कारों को यदि आज जीवित रख लेंगे तो हम जीवन के दावानल में कभी नही भटकेंगे। पूज्य श्री ने सभी बच्चों को उपदेश देते हुए कहा कि कर्म बन्धन जीवन की अज्ञान दशा है जिसे समझ व विवेक से दूर कर सकते है।

सिनेमा का उदाहरण देते हुए पूज्य श्री ने कहा कि जैसे सिनेमा देखते समय हमें अंधेरा प्रिय लगता है लेकिन जब उजाला होता है तो वास्तविकता का भी पता चलता है वैसे ही संसार का मनोरंजन तो अंधकार में अच्छा लगता है परंतु जब ज्ञान का प्रकाश जीवन में प्रवेश करता है तब हमें आध्यात्म अच्छा लगने लग जाता है।

उन्होंने कहा कि दर्पण में देख कर हम अपने चेहरे के दाग धब्बे दूर कर लेते है व्यवहारिक शिक्षा के लिए भी हम लौकिक शिक्षक से सहायता लेते है तो आत्मा को चमकाने व जीवन को संस्कारित करने के लिए सद्गुरु की आवश्यकता रहती है। हमारें भाग्य अच्छे है कि हमें सद्गुरु मिलें है उन्होंने बताया कि सत्य के अन्वेषक अपने आप को लघु समझे महात्मा गांधी के इस वचन का आचार्य श्री उमेशमुनिजी पर गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने अपना उपनाम "अणु" रख लिया।

बस इसी तरह सत्य के अन्वेषक बनकर हमें तर्क की कसौटी पर धर्म के मार्ग को स्वीकार करना चाहिए। पूज्य श्री ने अनेक तर्क व उदाहरण के माध्यम से युवाओं को संस्कारित करने का सदपुरुषार्थ किया।

अभयमुनिजी व शुभेषमुनिजी ने छोटे बच्चों को दी हित शिक्षा

सण्डे को सुपर सण्डे बनाते हुए प्रवर्तक संग चातुर्मास में सहायक बने अणु शिष्य पूज्य श्री आभयमुनिजी एवं पूज्य श्री शुभेषमुनिजी ने 4 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षित करते हुए उन्हें संस्कारित किया। 

बातों बातों में बच्चों ने ग्रहण किये प्रत्याख्यान 

पूज्य श्री द्वारा आत्मा को संस्कारित करने के उपायों पर विस्तृत चिंतन एवं जैन धर्म में प्रत्याख्यान कस महत्व बताया गया। पूज्य श्री ने बड़ो के वंदन से मिलने वाले आशिर्वाद का महत्व जब बताया गया तो अनेक बच्चों ने प्रवर्तक श्री के मुखारविंद से नित्य बड़ो को चरण वंदन करने के प्रत्याख्यान ग्रहण किये।

पूज्य श्री ने जीवन को संस्कारित बनाकर आत्मोत्थान पर जब चर्चा की गई एवं आत्मघात को महापाप बताया तो अनेक बच्चों ने आत्मदाह नही करने का संकल्प लिया। पूज्य श्री ने वर्तमान फैशन के दुष्प्रभाव एवं पर नेत्रों के पोषक बताते हुए कहा कि पश्चिम में गया सूर्य डूब जाता है वैसे ही पश्चिम सभ्यता से आत्मा में भी अंधकार छा जाता है। गरीब तो धन के आभाव में फ़टे वस्त्र पहनते है परंतु अमीर तो मानसिक गरीबी के कारण फ़टे वस्त्र पहनकर इतरा रहा है, उन्होंने कहा कि वस्त्र तो तन ढकने के लिए होते है जबकि आज कल तन को दिखाने के लिए वस्त्र पहने जा रहे है। 

उनके मार्मिक प्रवचन से अनेक बच्चों ने सादगी पूर्ण वस्त्र अथवा फ़टे कटे फैशन वाले वस्त्र नही पहनने के प्रत्याख्यान लिए। इस तरह जैन धर्म के संस्कार नित्य जपो नवकार पर जब गुरुवर ने जिन शासन की महिमा बताई तो कुछ बच्चों ने नित्य नवकार मन्त्र की माला गिनने की प्रतिज्ञा की। इस तरह पूज्य गुरुवर ने बातों बातों में बच्चों के भीतर ज्ञान के प्रकाश का दीपक जलाने का किया। अंत में पूज्य प्रवर्तक श्री ने सभी को मंगलपाठ सुनाया।

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