जिले की सबसे बड़ी डूब प्रभावित बस्ती रही है, राजनीतिक उपेक्षा का शिकार ग्रामीणों में नाराजगी ।
अग्री भारत सामाचार से गोपाल तेलंगे की रिपोर्ट ।
निसरपुर । मध्यप्रदेश में धार जिले की सबसे हाई प्रोफाइल विधानसभा कुक्षी मुख्यालय से महज 10 किमी की दूरी पर स्थित जिले की सबसे बड़ी डूब प्रभावित बस्ती निसरपुर में विस्थापित कार्यों में हुई लापरवाही के लिए सिर्फ नर्मदा घाटी विकास विभाग के अधिकारी ही दोषी नहीं है बल्कि इसमें क्षेत्र सहित जिले के जनप्रतिनिधि भी उतने ही जिम्मेदार है जितने कि विभाग के अपने पूर्वजों के हाथों निर्मित अपने घरौंदा को अपनी आंखों से डूबते देखते हुए रहवासियों को क्षेत्र के, जिले के, यहां तक की प्रादेशिक स्तर तक के जनप्रतिनिधियों ने भी पुनर्वास स्थलों पर तमाम सुविधाओं के सब्ज बाग दिखाए लेकिन इतने वर्षों बाद आज तक पुनर्वास हुए ग्रामीण मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे है पुनर्वास स्थलों पर सुविधाओं देने के नाम पर शासन ने तो करोड़ों खर्च कर दिए लेकिन उन करोड़ों रुपयों की बंदरबाट में में निसरपुर को खूब छला गया खूब तोड़ा गया यहां के रहवासी आज भी उन तमाम सुविधाओं को तरस रही है जिनके लिए वे हकदार है।
भाजपा और कांग्रेस दोनों जिम्मेदार ।
निसरपुर को भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों की सरकारों ने डूबते ओर बिखरते और सिसकते देखा है डूबने से लेकर विस्थापन ओर मुआवजा राशि तक का दंश यहां के रहवासी आज भी झेल रहे है क्षेत्र सहित प्रदेश स्तर तक के जनप्रतिनिधि निसरपुर आते है और ग्रामीणों के जख्मों पर आश्वाशन का मलहम लगा कर चले जाते है लेकिन विडंबना है कि यहां के पुनर्वास कार्यों में हुई बंदरबाट को लेकर किसी ने आवाज नहीं उठाई जिसका खामियाजा डूब प्रभावित आज भी उठा रहे है ।
ग्रामीणों की मांग नर्मदा घाटी विभाग के अधिकारी बदले जाए।
अग्री भारत समाचार निसरपुर पुनर्वास स्थल की समस्याओं ओर यहां हुए घटिया निर्माण को लेकर लगातार खबरें प्रकाशित कर रहा है इन खबरों को यहां अच्छा प्रतिसाद भी मिल रहा है उल्लेखनीय रहे कि निसरपुर पुनर्वास स्थलों पर बनाई गई घटिया सड़कों की करोड़ों रुपए की लागत से मरम्मत के लिए निविदाएं मंगाई है स्थानीय रहवासियों का कहना है कि जिस तरह निर्माण में गड़बड़ी हुई ओर सही काम नहीं हुआ तो मरम्मत में भी हाल वहां रहने वाला है इसलिए इस बार पुनर्वास स्थल पर सुधार के लिए वर्षों से जमे अधिकारियों की जगह किसी ईमानदार अधिकारी की देख रेख में काम हो जिससे डूब का दंश झेल रहे ग्रामीणों के लिए जो पैसा शासन खर्च कर रहा है उसका ईमानदारी से लाभ मिले।
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