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Agri Bharat Samachar -  Indore, Jhabua and MP Hindi News

अग्री भारत समाचार से ब्यूरो चीफ मु. शफकत दाऊदी की रिपोर्ट् ।

अलीराजपुर । मौलाई राज साहब हिजरी माह रबीउल अव्वल २३ तारीख को वफात हुए थे । इस दिन आपका उर्स मुबारक हर साल मनाया जाता हे । गुजरात सरकार ने शहरी विकास वर्ष २००५ में हेरिटेज में शामिल कर इस जगह को भारतीय संस्कृति एवं धार्मिकता को ध्यान में रखते हुए पर्यटन स्थल की तरह खुशबू गुजरात की योजना में समावेश के आदेश दिये हे । यह दरगाह मौलाई राज साहब की जो मोरबी शहर मे हे यहां पर ०५ अक्टूबर से ०७ अक्टूबर तक तीन दिन तक उर्स मनाया जाता हे । यहां पर दाऊदी बोहरा समाज के अनुयाई दुर देशों से मोरबी में  उर्स में शामिल होने के लिए आते हे । मोरबी में मौलाई राज बिन मौलाई दाऊद की दरगाह शरीफ हे काठियावाड़ वर्तमान में सौराष्ट्र जो गुजरात का ही हिस्सा हे । यहां पर दाऊदी बोहरा समाज की आबादी करीब ६०० साल से हे । मौलाई राज आप गुजरात  के पाटन से मोरबी तशरीफ़ लाए। इमान की खातिर वतन छोड़ कर इमान की दौलत के लिए एवं दावत की किताबों की रक्षा के लिए दुनिया की हुकूमत छोड कर आप काठियावाड़ पधारे । अहमदाबाद के मुल्ला राज़ बिन मौलाई हसन साहब ने फ़क़ीरी लिबास धारण किया था उसी तरह आपने बादशाहत छोड़ कर तकलीफ़ उठा कर काठियावाड़ में आपने दावत कायम की आपके सुपुत्र मौलाई दाऊद साहब हिजरी सन् ८३५ ( ई, सन् १४१४ ) में यमन के ० ८ वे दायी सैयद अली शमशुद्दीन बिन सैयदी अब्दुल्ला फखरुद्दीन साहब के जमाने में मोरबी मुकाम पर तशरीफ़ लाए मोरबी में दारुल हिजरत बनाया आपके आने के साथ ही मोरबी में सबसे पहले इमान की निशान बुलंद हुई । मौलाई राज साहब मोरबी के पहले आमिल क़ायम हुए । उस जमाने में हिंदुस्तान में मौलाई हसन बिन मौलाई आदम हिंदुस्तान के वाली थे । मौलाई राज साहब कपड़े बुनने का काम करते थे । वे जिस मोहल्ले में रहते थे वह वणकर शेरी के नाम से पहचानी जाती थी । मगर वर्तमान में मौलाई राज स्ट्रीट के नाम से प्रसिद्ध हे । आज़ भी मौलाई राज का घर, मस्जिद एवं ऐतिहासिक कुंवा मस्जिद में मोजूद हे । मौलाई राज उस जमाने में दायी की मोहब्बत, इखलाक व मोमिनों में हिदायत फरमाते थे । कपड़े बुनने के बाद व्यापार करते एवं उसमें से बचत कर गरीबों, यतिमो की मदद करते थे इतना ही नहीं आप नमाज के पाबंद थे आप की एक रिवायत मशहूर हे बताते हे की एक बार मगरिब की नमाज के समय यह सोच कर की एक बालिस्ट कपडा बुन कर इत्मीनान से नमाज अदा करुंगा व एक बालिस्ट कपडा बुनने में मगरिब का समय बीत गया आप काम तमाम कर मस्जिद के कुंवे से वजु बनाने के लिए पानी के लिए बाल्टी डाली तो पानी की जगह हिरे जवाहरात आए आपने वह हिरे जवाहरात की बाल्टी कुएं में खाली कर दी दुसरी बार उस बाल्टी में पानी की जगह दीनार दिहरत निकले साथ ही आवाज आई कि लो यह दुनिया की दौलत ओर आराम से अपना जीवन बसर करो उसी समय आपने कुएं की पाल पर बैठ कर खुदा से माफी मांगी ओर कहा कि मुझे दुनिया की दौलत नहीं चाहिए मुझे वजु बनाने के लिए पानी चाहिए इतना कहने के बाद आपने कुएं में बाल्टी डाली तो पानी भर कर आया ओर आपने वजु बना कर नमाज़ अदा की । आज़ भी यह कुंवा मोरबी की मस्जिद में हे जहा से मोमिन पानी सीफा के लिए ले जाते हे। ऐसे महान साहब का उर्स मुबारक हे।

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