अग्रि भारत समाचार से कादर शेख की रिपोर्ट
थांदला । कोरोना संक्रमण ने आम - ओ - खास आदमी के बीच की दूरियां मिटा कर रख दी लेकिन जहाँ खास आदमी पैसों के दम पर हर सुविधाओं को आराम से उपभोग करता रहा वही आम आदमी बमुश्किल अपने घर संसार की गाड़ी चला पा रहा है। कोरोना संक्रमण की विशाल महामारी में एक तरफ कई परिवार ने अपना आश्रयदाता खोया वही अनेक परिवार के लोगों की नोकरियां छीन गई व्यापार बन्द हो गए यहाँ तक कि आजीविका के सारें साधन खत्म हो गए फिर भी आशा और उम्मीद के सहारे वह जैसे तैसे अपना गुजर बसर कर रहा है। इस आपदा में जहाँ अनेक समाजिक संस्थाओं ने मदद के हाथ भी बढ़ाये तो कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होनें आपदा को अवसर मानते हुए खूब पैसा बटौरा। यदि ऐसे में शासन प्रशासन भी शामिल हो जाएं तो फिर आम आदमी किसके पास जाएं। ऐसा ही आपदा में अवसर तलाशा है देश के सबसे बड़े रेल्वें मण्डल ने। कोरोना संक्रमण के कारण पूरा रेल्वें यातायात बन्द रहा वही जब कोरोना संक्रमण कम हुआ तब सीमित सीट व पंजीयन व्यवस्था के चलते कुछ पैसेंजर ट्रेनों को एक्सप्रेस बनाकर उसका किराया दो - तीन गुना से भी ज्यादा कर यातायात पुनः शुरू किया गया जो आज भी उसी व्यवस्था के चल रहा है। इसमें बदलाव के नाम पर रिजर्वेशन को हटा दिया गया मतलब अब टिकट खिड़की से सामान्य तौर पर भी टिकट मिलने लगे है लेकिन टिकट के दाम कम नही किये गए यह आश्चर्यजनक बात है। इसमें भी निजीकरण की आब देखने को मिल रही है यही कारण है कि पहले तो पैसेंजर ट्रेनों को एक्सप्रेस बना कर किराया बढ़ाया और अब उन ट्रेनों में दर्जनों टिकट चेकरों को 'शिकार' की खोज में छोड़ दिया गया है, जो आदतन पैसेंजर समझ कर ट्रेन में चढ़े यात्रियों से 500 - 500 रुपया जुर्माना वसूल रहे हैं। ऐसे में आम आदमी जो बसों के बढ़ते किराए से भी परेशान है जिसके लिये राष्ट्रीय अधिमान्य पत्रकार महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक पवन नाहर, राष्ट्रीय अध्यक्ष मनीष कुमठ, राष्ट्रीय महासचिव कीर्तिश जैन ने आवाज उठाते हुए जनता के आवागमन में हो रही परेशानी व बडते यात्री किरायों को लेकर केन्द्र व राज्य सरकारों को संज्ञान में लाते हुए रेल्वें बोर्ड में दखल देने की अपील की है। उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण लगभग समाप्त हो चुका है ऐसे में रेल्वें बोर्ड को कुछ नई ट्रेनों को पुनः शुरू करना चाहिए वही यात्री किरायों को कम कर आम आदमी के बजट वाला बनाना चाहिए।
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