अग्रि भारत समाचार से कादर शेख की रिपोर्ट
थांदला । नवपद ओलिजी में आज नवकार के प्रथम पद पर विद्यमान अरिहंत भगवान की आराधना के अवसर पर जिन शासन गौरव जैनाचार्य पूज्य श्रीउमेशमुनिजी म.सा. के अंतेवासी शिष्य पूज्य श्रीधर्मदास गण प्रवर्तक पूज्य श्रीजिनेंद्रमुनिजी म. सा. ने धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि अरिहंत भगवान अनन्त दर्शन, ज्ञान, वीर्य और सुख के स्वामी होते है। उनकी देशना एकांत सुख का मार्ग बताती है जिसे हर सुनने वाला प्राणी चाहे वह मनुष्य हो या तिर्यंच सभी को सहज समझ आती है व उन्हें लगता है कि अरिहंत प्रभु मुझे ही कह रहे है। उन्होंने अरिहंत के अंनत गुणों के विषय मे बताते हुए सभी को आराधना की प्रेरणा दी। पूज्य श्री ने असमाधि के कारणों पर भी विस्तृत विवेचना करते हुए जीवन मे समाधि लाने के उपाय भी बताये।
इस अवसर पर धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्य श्री गिरिशमुनिजी ने उत्तराध्ययन के 14 अध्याय पर चर्चा करते हुए कहा कि जीव को भव भ्रमण रूप कर्म रूपी कर्जा मिला है जिसे क्षय करने के लिए आराधना का सुअवसर मिला है लेकिन वह विराधना करके अपना कर्ज और बड़ा रहा है जिससे वह सुख पाने की जगह दुख पा रहा है। आगम प्रमाण आगे करते हुए पुज्य श्री ने कहा कि जिन शासन में आगम में हर समस्या के अनेक समाधान है जिसे पहचानते हुए अपनाने की आवश्यकता है। आपने संसार सुख व सन्यास सुख का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए बताया की शास्रीरिक सुख व मानसिक साता के लिए सन्यास का मार्ग श्रेयस्कर है। धर्मसभा में आपकीं आज्ञानुवर्ती पुज्या श्रीनिखिलशीलाजी म.सा. आदि ठाणा सहित चतुर्विद संघ ने उपस्थित होकर जिनवाणी का रसपान किया। धर्मसभा का संचालन संघ मंत्री प्रदीप गादिया ने किया।
जिन शासन में तप का महत्व सर्व विदित है। इसी तारतम्य में जानकारी देते हुए संघ अध्यक्ष जितेन्द्र घोड़ावत, प्रवक्ता पवन नाहर व नवयुवक मंडल अध्यक्ष कपिल पिचा ने बताया कि गुरुदेव के निश्रा में नवपद ओलिजी की आराधना करने वाले 50 से ज्यादा तपस्वियों ने दूध, दही, घी, तेल, शक्कर आदि विगय एवं नमक मिर्च रहित एक समय केवल बफा हुया भोजन ग्रहण करने स्वरूप आयम्बिल, वरण, उड़द एवं निवि तप के प्रत्याख्यान ग्रहण किये। सभी तपस्वियों के सत्कार की व्यवस्था पूज्य श्रीधर्मलता महिला मंडल द्वारा स्थानीय महावीर भवन पर की गई।
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