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rohit prakaran aur ramanath ka rashtrapati banana

नई दिल्ली । आपको याद होगा हैदराबाद सेन्ट्रल विश्वविद्यालय के दलित छात्र की आत्महत्या का वह प्रकरण जब जे एन यू और जामिया मिल्लिया वि वि के छात्रों के साथ देश के 30 विश्वविद्यालयों में रोहित वेमुला की आत्महत्या के लिए जिम्मेवार विश्वविद्यालय के कुलपति और दो केन्द्रीय नेताओं के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश उभरा था तथा दलित एकजुटता मुखर हुई थी ।वह सन् 2016 का जनवरी माह था।


 जब हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने नवंबर 2015 में पांच छात्रों को हॉस्टल से निलंबित कर दिया था, जिनके बारे में कहा गया था कि ये सभी दलित समुदाय से थे. 17 जनवरी 2016 को निलंबित छात्र रोहित वेमुला ने हॉस्टल के एक कमरे में आत्महत्या कर ली थी।कहा गया था कि कॉलेज प्रशासन की ओर से की गई कार्रवाई की वजह से रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली थी।

अट्ठाइस साल के पीएचडी छात्र रोहित पिछले कई दिनों से खुले आसमान के नीचे सो रहे थे उसे जब निकाला गया वे भीमराव अम्बेडकर की फोटो को हाथों में लिए हुए थे । उनका प्रवेश विश्वविद्यालय के हर सार्वजनिक स्थल पर प्रतिबंधित कर दिया गया था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के एक सदस्य ने इन छात्रों पर मारपीट करने का आरोप लगाया था।रोहित युनिवर्सिटी में अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के सदस्य थे.वो कैंपस में दलित छात्रों के अधिकार और न्याय के लिए भी लड़ते रहे थे।

अगस्त 2016 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपी गई थी. 2 फरवरी 2016 को मंत्रालय ने न्यायमूर्ति रूपनवाल के नेतृत्व में एक सदस्यीय समिति का गठन रोहित वेमुला आत्महत्या के मामले की जांच के लिए गठित की थी। लेकिन उसे दलित भी नहीं माना गया और उसके पत्र को आधार मानकर सबको निर्दोष मान लिया गया।लेकिन, उनकी मां राधिका ने रोहित की मौत के बाद छोटे पुत्र एडवोकेट राजा वेमुला के साथ एक लंबी लड़ाई लड़ी है। उनकी मौत के बाद विश्वविद्यालयों में दलितों के साथ भेदभाव को लेकर कई आंदोलन हुए।क्षोभ में आकर मां ने कई लोगों के साथ अब बौद्ध धर्म अपना लिया है लेकिन वे दलितों पर हो रहे अत्याचारों की लड़ाई लड़ रही हैं और लोकप्रिय नेत्री के रुप में सजगता पूर्वक सक्रिय हैं।यह पूरा साल दलित आंदोलन के रूप में जाना गया।

इसके बाद इसी साल 18 जुलाई को गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले में दलितों ने एक रैली निकाली थी और इसके बाद उन्होंने कलेक्टर ऑफिस के सामने और आसपास मरी हुई गायें फेक दीं थीं. दक्षिणी गुजरात के मोटा समाधियाला गांव में 11 जुलाई को गौरक्षक दल के कुछ कार्यकर्ताओं ने चार दलितों के साथ बुरी तरह मारपीट की थी और यह रैली उसी घटना के विरोध में निकाली गई थी।जिला प्रशासन के सामने उस दिन मरी हुई गायें एक अलग तरह की मुसीबत बन चुकी थीं लेकिन यह बस एक शुरुआत थी. रैली करने आए दलितों ने मिलकर फैसला किया कि अब वे मरे जानवरों से जुड़े पेशे का बहिष्कार करेंगे. महेशभाई कहते हैं, ‘मरी गायें उठाने वाले दलितों को लंबे समय प्रताड़ित किया जाता रहा है. इसलिए हमने तय किया कि यह काम बंद करके हम इन लोगों को सबक सिखाएंगे. गौरक्षक यह कहकर हमें पीटते हैं कि गाय उनकी माता है. तो फिर ठीक है. अब उन्हें गाय की देखभाल करनी चाहिए और जब वो मर जाए तो उसे ठिकाने लगाना चाहिए, महेशभाई दलित अधिकारों के लिए काम करने वाला संगठन – समता सैनिक दल चलाते हैं।

इस घटना से हालत बदतर हो गए तथा गौ के मृत शरीर से प्राप्त सामग्री से चलने वाले उद्योग भी बंद होने की स्थिति में आ गया गए ।इनके निपटान में लगे लोगों का भी काम प्रभावित हुआ बाद में यह आंदोलन वापस ले लिया गया । लेकिन वेमुला से जुड़े प्रतिरोध और गुजरात आंदोलन ने भारत सरकार को सोचने विवश कर दिया कि दलित यदि नाराज रहे तो आगे चुनाव जीतना मुश्किल होगा।

इसी वर्ष के बाद लगभग ये तय हुआ कि दलित वर्ग को ख़ुश करने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाए जाने की ज़रूरत है तब पूर्व राज्यसभा सदस्य और बिहार में राज्यपाल रहे रामनाथ जी को राष्ट्रपति बनाने की मन:स्थिति बनी और तब कई पहुंचे हुए नाम दरकिनार करने पड़े। 27जुलाई 2017 को रामनाथ कोविंद जी ने भारत के राष्ट्रपति पद की शपथ ली।वे जुलाई 2022तक इस पद पर रहेंगे।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राष्ट्रपति जी का प्रेसीडेन्शियल टे्न से आजकल उ.प्र. के कानपुर और लखनऊ में दौरा चल रहा है जो आत्मीय जनों से मुलाकात बताया जा रहा है पर इसके मूल में उ०प्र०के दलितों को ये जताना है कि भाजपा ही है जिसने एक दलित को राष्ट्रपति बनाया है इस पद का ये दुरुपयोग ही कहा जाएगा ।लगता है जिस दलित आंदोलन की वजह से वे राष्ट्रपति बने हैं उसका पूरा फायदा सरकार उठा रही है।इस बीच राष्ट्रपति जी का उनको प्राप्त वेतन और कटौती भी चर्चाओं में है।जो सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही है ।आगे मोदी और शाह के साथ राष्ट्र पति जी के ताल्लुकात कैसे रहते हैं यह आने वाले समय में सामने आएगा ।हां ये ज़रूर है कि राष्ट्रपति के इस बयान से एक नई बहस चारों तरफ छिड़ गई है।



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