सुसंस्कृति परिहार
नई दिल्ली । किसान गणतंत्र परेड और उसके दौरान घटित घटनाओं को लेकर इन दिनों चर्चाओं का बाजार गर्म है । सरकार इस आंदोलन पर कार्रवाई करने का मन बना चुकी है किसान पीछे हटने तैयार नहीं हैं कुछ प्रश्न पूछे जाने चाहिए । भारत के गणतंत्र दिवस पर एक तो पुलिस ने कुछ नियमों के साथ किसान टे्क्टर रैली अनुमति देकर यह कैसे सोच लिया कि दूरदराज गांवों से आने वाले किसान थम जाएंगे और उनके द्वारा अनुशंसित टे्क्टर , ट्रालियां और किसान ही परेड में शामिल होंगे और वे आक्रोशित नहीं होंगे ।जबकि उनके 152 किसानों की शहादत से उनका जिगर छलनी था। हालांकि किसान नेताओं को यकीन था कि उनके आदेश का पालन होगा। जबकि शाहजहांपुर,चिल्ला सहित चार बार्डरों से रैली नियम पूर्वक आगे बढ़ी कुछ बार्डरों पर बैरीकेड नहीं हटे थे जिन्हें अपील के बाद जब नहीं खोला गया तो उत्तेजित किसानों ने पुलिस को छकाया पुलिस ने हल्के बल प्रयोग और अश्रुगैस के गोले छोड़े लेकिन बेकाबू भीड़ आगे बढ़ गई ।एक युवा किसान मारा गया जिसकी मौत संदिग्ध है बताते हैं यहां शायद गोली चली जो सीधे आंख में लगी और ट्रेक्टर पलट गया और उसकी मौके पर ही मौत हो गई । बताते हैं इसके बाद ही किसानों को गलत रास्ते पर भेजकर गुमराह किया गया और वे सीधे लालकिले पहुंच गए जहां दुर्भाग्य पूर्ण घटना हुई । लेकिन यह भी सच है हमारा तिरंगा शान से फहराता रहा उसे उतारा नहीं गया ।और जिस युवा ने दो झंडे फहराए वह जाना-माना भाजपा कार्यकर्ता निकला । जिससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि उस युवा को दिल्ली पुलिस का पूरा सपोर्ट था वह किसके इशारे पर मिला यह सच सामने आ चुका है।इसे आगे किस तरह लिया जाता है कहा नहीं जा सकता ।वहां पहुंचे किसान हतप्रभ थे । उन्होंने उसे पकड़ने की कोशिश की लेकिन वह अपना काम कर मोटरसाइकिल से भाग गया ।ऐसे कई लोगों को पकड़ कर किसान इससे पूर्व पुलिस को सौंप चुके हैं । किसान नेताओं ने बराबर दो आंदोलित दलों से दूरी बनाई थी और ऐसी संभावना भी जताई थी और वही हुआ भी।
किसान संघर्ष समिति के महासचिव हन्नान मौला ने कुछ किसानों की गलतियों के लिए क्षमा मांगी है । राकेश टिकैत और योगेन्द्र यादव ने भी इस भ्रमित हुई भीड़ की गलतियों का ठीकरा अपने सिर लिया है जो जरूरी है उन्होंने लेकिन यह भी मांग की है इन सब मामलों की निष्पक्ष जांच हो ।जबकि जांच से पहले ही वस्तुस्थिति सामने आ चुकी है ।
सवाल ये उठता है कि जब दिल्ली पुलिस ने यह जिम्मेदारी ली थी तो कैसे इतने किसान दिल्ली में प्रविष्ट हुए ? किसान लालकिले तक पहुंचे कैसे ? फिर लालकिले तक मुख्य गणतंत्र समारोह की झांकियां गई वहां पुलिस का जबरदस्त इंतजाम था वहां एक युवक लालकिले का मज़बूत गेट खोलकर भीड़ को अंदर भेजता है अपने झंडे फहराता है पुलिस तमाशबीन खड़ी रहती है । दिल्ली पुलिस ऐसी भोली भाली तो ना थी ।जब तक सम्बंधित युवा भाग नहीं जाता तब तक पुलिस ऐक्शन में नहीं आती ।इस पुलिस का रुप हमने दिल्ली दंगे,जामिया मिल्लिया और जे०एन०यू०में भी देखा था ।कहा जाता है पुलिस ऊपर के आदेश से चलती है शायद ऐसा ही हुआ हो ।एक और दृश्य सोशल मीडिया पर है मुकरबा का जिसमें भारी पुलिस बल किसानों से डर कर ऐसे भाग रहा है जैसे उनकी जान पर बन आई हो ।जबकि हमारी पुलिस की जान तो जनसेवा को समर्पित होती है।
कुल मिलाकर जो किसान गणतंत्र परेड रैली का आयोजन पूरी तरह सफल रहा उसने ये दिखा दिया किसान मोर्चे के आव्हान पर लाखों लाख किसान जान जोखिम में डालकर काले कानून हटाने प्रतिबद्ध है । आंदोलन जारी रहेगा उसे नई ऊर्जा मिली है कि सार्वजनिक तौर पर उन ताकतों का भंडाफोड़ हुआ है जो आंदोलन को टुकड़े टुकड़े करने आमादा हैं
सबसे बड़ी बात किसानों की यह परेड दुनियां भर में देखी और सराही गई ।जिसका गहरा असर आने वाले वर्षों में दिखेगा ।इस परेड पर दिल्ली वासियों ने जिस तरह पुष्प वर्षा कर स्नेह दिया वह गांव और शहर के रिश्ते को मजबूत करेगा । दिल्ली ने किसानों को भोजन देकर भी अन्नदाता से रोटी की यारी निभाई ।एक तरफ मुख्य समारोह में जहां सरकार की उपलब्धियां थीं वहीं किसान परेड में देश की ख़ासकर किसानों की समस्याएं थीं । योगेन्द्र यादव सही कह रहे थे एक तरफ हमारा तंत्र था तो दूसरी और गण था । गणतंत्र दोनों से परिपूर्ण होता है ।
अफ़सोसनाक तो ये था कि इस बार गणतंत्र समारोह में कोई मुख्य अतिथि शामिल नहीं हुआ । आकर्षक परेड को छोटा किया गया । बच्चों की संख्या भी लेशमात्र थी ।सवाल ये उठता है क्या ये सब कोरोना की वजह से हुआ जैसा बताया जा रहा है ?तो दिल्ली पुलिस बिना मास्क के क्यों नज़र आई ?यह तो बहानेबाजी ही है । चुनाव सभा में हज़ारों की भीड़ जुट रही है नेता जा रहे हैं । किसान रैली में भी मास्क और सैनेटाईज़र की शर्त पुलिस ने भी नहीं रखी ।असल बात तो यही लगती है खालसा और पाकिस्तानी आतंकी किसानों को बताकर दुनिया को गुमराह किया गया और फिर इसे साबित करने की साज़िश रची गई जिसमें कतिपय किसानों को गुमराह किया गया ।यह विचारणीय है किसान क्योंकर ये जोखिम लेंगे जो परिवार सहित आंदोलन में शामिल हैं जिनमें महिलाएं, बच्चे, बुज़ुर्ग बड़ी तादाद में शामिल हों ।कुल जमा यह कि यह किसान आंदोलन को बदनाम करने और नेताओं को जेल भेजकर डराने की असफल कोशिश हुई है ।याद रखें जिन्होंने इतनी शहादत दी हैं वे पीछे हटने वाले नहीं ।यह भी सोचे सरकार यदि किसान लड़ने के मूड में गए होते तो क्या कम से कम दो लाख ट्रैक्टर थे और दस लाख लोग भी काफ़ी थे। क्या दिल्ली में एक भी दुकान लूटी गई? क्या पब्लिक की कोई कार टूटी? क्या किसी के घर का एक फूल भी किसी ने तोड़ा? किसी लड़की से छेड़खानी हुई? कोई एंबुलेंस रोकी गई? अगर कुछ करते तो समूची दिल्ली दहल जाती । पिछली घटना से आंदोलन की गति भले कमज़ोर हो जाए ।पुलबामा की पोल खुलने के बाद देश और दुनिया इस सरकार को माफ़ नहीं करेगी ।अभी भी वक्त है सरकार किसानों का साथ दे अमीरों का छोड़े । अपनी भूल सुधार ले ।
Post a Comment