अग्रि भारत समाचार से कादर शेख की रिपोर्ट
थांदला । आजकल का जमाना मौज व टिकटोक जैसे एप के जरिये दिल की ख्वाहिश को पूरा करने का है वही आज भी का जमाना है लेकिन कुछ खानाबदोश ऐसे भी है जो बहरूपिया बनकर विविध कैरेक्टर करते हुए अनेक वर्षों से अपनी आजीविका के लिए इसका उपयोग करते चले आ रहे है। लगभग दो वर्ष बाद नगर में नारदमुनि की वेशभूषा में पारंगत बहरूपिया आकाश दिखाई दिए। उन्हें देख कर उनके पिता की स्मृति भी सहज सामने आ गई परिवार से विरासत में मिले इस हुनर को बख़ूबी निभाने वाले 40 वर्षीय आकाश पढ़े लिखे होने के बावजूद इस कला को जिंदा रखे हुए है। उन्होंने बताया कि वे राजस्थान के धार्मिक स्थल नाथद्वारा (जयपुर) राजस्थान से थांदला में अपने पिता बाबूभाई भट्ट बहरूपिया के साथ आते थे वही 18 पीढ़ियों से विभिन्न वेशभूषा एवं भावाभिव्यक्ति के द्वारा उनके पूर्वज जनता का मनोरंजन करने आ रहे है। आज यह कला लगभग लुप्त हो चुकी है लेकिन फिर भी अपने व अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिये आकाश भी लम्बे समय से सनातनी देवताओं के तो फिल्मी चर्चित रोल कर उनके संवाद कहते चले आ रहे है। उन्होंने बताया कि आज वे देवऋषि नारदमुनि बने है वही आगामी दिनों में क्रूरसिंह, अलाद्दीन, जानिदुश्मन, जोकर, एकलव्य, भील मानव जैसे किरदार अपनाकर जनता का मनोरंजन करेंगे। वही वे मेरा गांव मेरा देश का डाकू जब्बरसिंह, शोले के गब्बरसिंह, दूधवाली, मालन, भिखारी, अपंग बनकर अपनी डायलॉग बोलने में माहिर है। वे लगभग 10 दिनों तक जनता का मनोरंजन करते हुए उनसे मिलने वाली दक्षिणा से अपना गुजारा करते है। देश के लगभग सभी राज्यों में अभिनय कौशल बता चुके आकाश अपने पिता के साथ गोवा फेस्टिवल व विदेशों में भी अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके है।
उन्होंने बताया कि उनके पिता व अन्य दो भाई भी इस कला में पारंगत है व वे भी बहरूपिया बनकर अपना व अपने आश्रितों का पेट भरते है। इस प्रतिनिधि के माध्यम से उन्होंने जनता का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि वह इसी तरह का प्यार देते रहे वही सरकार से अपील की की उन्हें इस कला को जिंदा रखने के लिये कुछ प्रयास करना चाहिये। आज मोबाइल युग मे जब भी सोशल मीडिया जैसे एप पर किसी को अभिनय करते देखता हूँ मुझे उस एप निर्माण में कही ना कही बाबू भाई व आकाश जैसे पारंगत कलाकार का अप्रत्यक्ष हाथ जरूर दिखाई देता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं महिला बाल विकास आयोग व आईजा मध्यप्रदेश इकाई के प्रदेशाध्यक्ष पवन नाहर ने भारत सरकार, मध्यप्रदेश शासन प्रशासन से निवेदन करते हुए कहा कि उन्हें चाहिये की वह भी लुप्त होती बहरूपिया कला का शासकीय योजनाओं के प्रचार प्रसार में करते हुए उन्हें संजीवनी प्रदान करें।
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