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अग्रि भारत समाचार से नरेंद्र तिवारी की रिपोर्ट

India will be strengthened by following civil religion.

सेंधवा। गणतंत्र दिवस महज भारतीय संविधान के लागू किये जाने की तिथि भर नहीं है। यह स्वतन्त्रता की लंबी और संघर्षपूर्ण लड़ाई का आदर्श परिणाम है। जिस आजादी की प्राप्ति के लिए अनगिनत भारतीयों ने अपने प्राणों को बलिदान कर दिया,अंग्रजो के अत्याचारों,अन्यायों ओर काले कानूनों से अनवरत चलती स्वतन्त्रता की लड़ाई का वह आदर्श मुकाम है। जो 26 जनवरी 1950 को आजादी की लड़ाई के वीर योद्धाओ को मिल पाया। यह दिवस आजादी के बलिदानों की विजय का दिवस है। भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण तिथि 26 जनवरी 1950 जिस दिन भारत के नागरिकों ने अपने संविधान को लागू किया। भारत के संविधान की प्रस्तावना के पवित्र शब्दो,भावों ओर अर्थो को समझना हर भारतीय के लिए बेहद जरूरी है।

 यह भारत का संविधान ही है जो भारत के लोगो को नागरिक रूप प्रदान करता है। यहाँ प्रस्तावना का उल्लेख करना भी जरूरी है। प्रस्तावना के पवित्र शब्द "हम भारत के लोग,भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी, पथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को न्याय,अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, उपासना, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा, उन सब में व्यक्ति की नागरिकता ओर राष्ट्र की एकता अंखडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए,दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा मे आज तारीख 26 नवम्बर 1949 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत,अधिनियमित ओर आत्मार्पित करते है।" 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा द्वारा विधिवत रूप से संविधान को अपनाया गया था। इस दिवस को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। जबकि 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया था। भारत गणतंत्र बन गया था। संवैधानिक शासन की स्थापना हो गयी थी,भारत के नागरिकों का शासन स्थापित हो गया था,जनतंत्र जो आजादी की लड़ाई का महत्वपूर्ण लक्ष्य था भारत ने प्राप्त कर लिया था।


   भारत का संविधान ही वह पवित्र ग्रंथ है,जो हमें नागरिक होने का दर्जा देता है,इसी महान ग्रंथ में नागरिक अधिकारों और कर्तव्यों का विस्तार से वर्णन किया गया है। 

   नागरिक स्वतन्त्रता,न्याय और समानता के उच्च आदर्शो से परिपूर्ण भारत का संविधान नागरिक अधिकारों की ग्यारंटी का दस्तावेज है। गणतंत्र दिवस भारत की जनता के गर्व ओर उल्लास का दिवस है। नागरिकता के गौरव उल्लास का यह राष्ट्रीय पर्व सभी जाति,धर्म और पंथ की भावना का प्रतिनिधि पर्व है। गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत के आम नागरिकों को अपने नागरिक अधिकारों के साथ नागरिक कर्तव्यों के पालन पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। बेशक लोकतंत्र में अभिव्यक्ति का हक है,किंतु यह अभिव्यक्ति का अधिकार प्रतिबंधों ओर मर्यादाओ के साथ है। आमतौर पर अनेको जिम्मेदार नेताओं के बयानों ओर भाषणों पर नजर डालने पर प्रतीक होता है कि सत्ता तक पहुचने के लिए अमर्यादित ओर अलोकतांत्रिक शब्दावली का उपयोग कितना बढ़ गया है। इसी का अनुसरण पार्टी के कार्यकर्ताओं एवं आमजनो द्वारा किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर दिखने वाले दृश्य तो बेहद चिंतनीय ओर डरावने से प्रतीत होते है। वाट्सएप,ट्विटर,इंस्टाग्राम,फेसबुक हिंसक विचारो से भरे पड़े है। इन माध्यमो पर नजर दौड़ाने पर हम पाते है कि धर्म,जाति,भाषा और दल की लड़ाई में इतने आगे निकल गए कि राष्ट्र धर्म का अहसास ही नही रहा ।आमतौर पर आरक्षणों के आंदोलनों में देश ने देखा है, राष्ट्रीय संपत्ति का कितना नुकसान किया गया जाता है। राजनैतिक दलों के कार्यकर्ताओ के आचरणों में भी दल भक्ति बड़ी दिखाई देने लगी है, दलभक्ति को ही देशभक्ति मानने का जागता भाव अधिकांशतः देखने को मिल रहा है। जो गम्भीर चिंता का विषय है। राजनैतिक दलों के कार्यकर्ताओ का आचरण मर्यादित ओर लोकतांत्रिक होना बेहद जरूरी है। इन कार्यकर्ताओ के आचरण से ही आमजन सीखता है। देश के नागरिकों के कार्यो,आचरणों का प्रभाव राष्ट्र निर्माण पर भी पड़ता है। संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखित शब्द "हम भारत के लोग" ओर कोई नहीं हम भारत के नागरिक ही है,जो धर्म,जाति ओर भाषा की लड़ाई में इतने उग्र होते जा रहें है कि नागरिक धर्म के सामान्य शिष्टाचारों का पालन करना भी भूल गए है। नागरिक समाज मे प्रजातांत्रिक मूल्यों का अहसास ही भारत को दुनियाँ में महाशक्ति बना सकता है।


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नरेंद्र तिवारी 'एडवोकेट'

7,शंकरगली मोतीबाग 

सेंधवा जिला बडवानी मप्र

मोबा-9425089251

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