अग्रि भारत समाचार से रशीदा पीठावाला की रिपोर्ट
इंदौर । संस्था गो सेवाभारती ने गोबर से निर्मित दिये का विरोध करते हुए इसे गरीब कुम्हारों की रोजी रोटी छिनने वाला, आव्यवारीक एवं कुम्हारों के हितों पर कुठाराघात बताया है। संस्था के महामंत्री राजेन्द्र असावा व प्रचार प्रमुख बुरहानुद्दीन शकरूवाला ने कहा की गरीब कुम्हार दिपावली पर्व पर मिट्टी के दीए बेचकर अपनी रोजी-रोटी चलाता है। देश के कुम्हारों का क्या होगा उनके बनाएं दिए नही बिकेंगे।
भारतीय संस्कृति परंपरा में भी मिट्टी के दीए का ही प्रचलन है और यह ही उचित व पर्यावरण रक्षक है। गोबर के दिऐ जनता की आस्था के साथ खिलवाड़ है।
गोबर से बने दिये जलाने पर दुर्घटना की पूरी संभावना है।गोबर ज्वलनशील होता है और अगर केमिकल मिलाकर दिए बनाये गये तो और ज्यादा पर्यावरण को नुक्सान हो सकता है। मिट्टी का दिया एक रुपए प्रति नग मिल जाता है और गोबर से निर्मित दिया का भाव प्रति नग तीन रुपए से पांच रुपए तक बताया जा रहा है जबकि लागत दोनो की एक जैसी फिर ये मुनाफाखोरी क्यो। संस्था संयोजक अशोक गुप्ता व कार्यकारी अध्यक्ष सुरेश पिंगले ने कहा की गोबर एव गोबर खाद धरती माँ का प्राकृतिक भोजन है। गोबर का उपयोग हवन और अंतिम संस्कार के लिए कंडे बनाने में किया जाना चाहिए। गोबर के कंडे शहर के सारे शमशान घाट में अंतिम संस्कार में प्रतिदिन लगते है। देशभर की गोशालाये जनसहयोग से सुचारू चल रही है गोशाला को गोशाला रहने दे आमदनी का जरिया नही बनाये। संस्था ने आम जनता से अपील की है कि वे मिट्टी से बने दिए ही खरीदें।
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