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लेखक इब्राहिम रिज़वी ✍️
बड़वानी। मानवता और परोपकार के झंडाबरदार रतन टाटा बोल कर नहीं जी कर बता गए सादगी का किसी दौर में कोई मुकाबला नहीं । हम इस दुनिया में पैदा होते हैं, जीते हैं और मर जाते हैं। आप जिंदगी में जो कुछ भी करते हैं, शाम को घर लौटते वक्त यही चाहते हैं कि आपने जो कुछ किया है, आप उसके लिए याद रखे जाएं। आपने जो निर्णय लिए वे सही साबित हों और आप महसूस कर पाएं कि आपने ठीक किया। आप उन लोगों की जिंदगी में क्या बदलाव लेकर आए, जो कम सौभाग्यशाली हैं, जरूरतमंद हैं । यह कथन थे भारत के सबसे बड़े औद्योगिक घराने और भारत के आम आदमी में भरोसे और यकीन के पर्याय टाटा ग्रुप के जीवित किंवदंती रहें रतन टाटा के देश के सबसे बड़े ब्रांड वैल्यू टाटा के किसी भी प्रोडक्ट चाहें वो चाय हों या नमक या स्टील हो या कार या कोई और उन्होंने कभी किसी उत्पाद की गुणवत्ता से समझौता किया और ना ही कभी मूल्यों से डिगे। कई बार नुकसान भी हुआ, लेकिन उनका यही मानना था कि जब रात को मैं घर लौटूं तो यही सोचकर कि मैंने कोई समझौता नहीं किया।
रतन टाटा की मौजूदगी आपके भीतर नई ऊर्जा का संचार करती थी। एक भरोसा जगाती है कि हालात कितने भी विपरीत हों, सच्चाई और ईमानदारी के साथ भी कामयाबी का शीर्ष गढ़ा जा सकता है। वे ये विश्वास दिलाते हैं कि मूल्य कभी तरक्की में बाधक नहीं बनते और सिर्फ विरासत के बूते जिंदगी के ध्येय हासिल नहीं किए जा सकते।
आज पैसों के लिए भागती दुनिया और थोड़ा सा धन आने पर धन का भोंदा प्रदर्शन और किसी भी हद तक समझौता करने वाले को रतन टाटा ने दिखाया की शीर्ष पर भी पहुंचकर सादगी और मूल्यों पर टिके रहकर कैसी मकबुलियत हासिल की जा सकती है। उनके निधन पर देशवासियों को ऐसा लग रहा है कि घर का कोई मुखिया अनंत यात्रा पर चला गया जिसके होने से जिसकी छाया में पुरा परिवार महफूज़ था । रतन टाटा ने सीखाया अपने लक्ष्य पर फोकस कर नवाचार को बढ़ावा देते हुए अपने कर्मचारियों पर भरोसा करते हुए और उनका भरोसा जीतते हुए कैसे और क्यों कोई नाम पीढिय़ों के लिए विश्वसनीयता का प्रतीक बना हुआ है। देश में यह बात टाटा के हिस्से में ही आई। जहां पहुंचने के लिए बहुत धैर्य, गंभीरता, इमानदारी मूल्यों के प्रति समर्पित और सादगी से जीवन गुजारना पड़ता है जो आज के युग में हर किसी के बस की बात नहीं है। देश के सच्चे सपूत कों अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
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